आरजीपीवी द्वारा भारतीय ज्ञान परंपरा प्रकोष्ठ यूआईटी हम अमृत पुत्र हैं,गाय और भूमि के महत्त्व को महत्त्व को समझें-केइएन राघवन

भारतीय ज्ञान परंपरा प्रकोष्ठ यूआईटी आरजीपीवी द्वारा “गाय आधारित कृषि के सन्दर्भ में प्राचीन भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी” विषय पर विश्वविद्यालय के सीनेट हाल में व्याख्यान कार्यक्रम आयोजित किया गया. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि मेनिट भोपाल के निदेशक, डॉ. करुणेश कुमार शुक्ला, मुख्य वक्ता मोटीवेशनल स्पीकर एवं ख्यात सामाजिक कार्यकर्ता श्री केइएन राघवन (चेन्नई) थे.
कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यलय के कुलपति प्रो. राजीव कुमार त्रिपाठी ने की. इस अवसर पर प्रभारी निदेशक यूआईटी प्रो. विनय थापर, भारतीय ज्ञान परंपरा प्रकोष्ठ के समन्वयक डॉ. शशिरंजन अकेला, सह समन्वयक प्रो. सुरेश सिंह कुशवाह सहित विभिन्न विभागों के प्राध्यापकगण, शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित थे.
कार्यक्रम का प्रारम्भ अतिथियों द्वारा सरस्वती के चित्र के समक्ष पुष्प अर्चन कर किया गया, तत्पश्चात कार्यक्रम को संबोधित करते हुए राजीव गाँधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजीव कुमार त्रिपाठी ने कहा कि भारत की प्राचीन ज्ञान परंपरा अत्यंत समृद्ध रही है विभिन्न कारणों से हम इससे विमुख हुए, आज दुनिया में सस्टेनेबल डेवलपमेंट की बात हो रही है तथा पर्यावरण के संवर्धन एवं संरक्षण हेतु दुनियाभर में संगोष्ठी हो रही है.
किन्तु भारत का ज्ञान एवं उसकी परम्पराओं में सारे प्रश्नों एवं समस्यायों का समाधान उपलब्ध है. भारतीय समाज प्रकृति पूजक रहा है इसलिए वृक्षों की पूजा, गौ सेवा, हमारी संस्कृति का हिस्सा रही है.
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए मुख्य अतिथि मेनिट भोपाल निदेशक, डॉ. करुणेश कुमार शुक्ला ने कहा कि आज समय की मांग है की भारत के परंपरागत ज्ञान एवं आधुनिक तकनीक का समन्वय कर प्रकृति के संवर्धन एवं संरक्षण के लिए समाधान ढूँढा जाए. आज पूरी दुनिया आर्गेनिक फार्मिंग के माध्यम से शुद्ध भोजन चाहती है तथा कृषि एवं पर्यावरण के क्षेत्र में समाज पुरातन परम्पराओं को पुन: अपना रहा है.
इस अवसर पर चेन्नई के ख्यात समाजसेवी श्री केईएन राघवन जिन्होंने जैविक कृषि के लिए “गाय आधारित कृषि के सन्दर्भ में प्राचीन भारतीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी” को आत्मसात करने के लिए देशभर के ७५ हज़ार से अधिक किसानों को प्रशिक्षण प्रदान किया है ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि भारत की आर्थिक समृद्धि का आधार खेती एवं कुटीर उद्योग रहे हैं, १५ हज़ार वर्ष पूर्व ऋग्वेद का मंत्र कहता है कि “मुझे मेरे गाँव में विश्व के अस्तित्व का दर्शन हो यानी महर्षि विश्ववामित्र से लेकर यागवल्क्य ऋषि एवं तदुपरांत महर्षि पाराशर, कौटिल्य, वराहमिहिर एवं चक्रपाणी ने अपने ग्रंथों में कृषि कि उन्नत तकनीक, उपकरणों एवं उसके दर्शन का उल्लेख किया है, शतपत ब्राह्मण में प्रकाश संश्लेषण, पाराशर ऋषि की वृक्ष आयुर्वेद पुस्तक में कृषि विषयक अनुसंधानों का उल्लेख है. हमें अमृत पुत्र कहा जाता है क्यूंकि दूध, दही, घी, एवं गुड इन पांच अमृतों का पान हम करते रहे जिसे पंचामृत कहते हैं. भारतीय दर्शन कहता है पृथ्वी हमारी माता है, हम इसके पुत्र हैं, गाय हमारी संस्कृति है इससे हमारा डीएनए बना है. दो प्रकार की समस्याएं मनुष्य के लिए महत्वपूर्ण हैं, भूख एवं रोग. इसका निवारण प्रकृति में व्याप्त अन्न, जल, एवं हवा तथा पंचगव्य के उपयोग से है. राजा पृथा ने अन्न बनाया, पांच प्रकार के चावल बनाए तथा कृषि सूक्त में बीज के शुद्धिकरण का भी उल्लेख किया. वास्तव में खेती करने में २२ विभाग काम करते हैं इसलिए बीज संस्करण, पर्जन्य अनुष्ठान, अन्न को जहर से मुक्त करना तथा अन्न की शुद्धि के लिए गोमूत्र के प्रयोग का प्रावधान बताया गया.
श्री राघवन ने कहा की विश्वामित्र कृषि करके ब्रह्मर्षि बने, उन्होंने कृषि के १५० से अधिक उपकरणों एवं अनेकों प्रविधियों की जानकारी प्रदान की, शुद्ध अन्न की चर्चा ग्रंथों में आई क्यूंकि अच्छा मनुष्य बनने के लिए शुद्ध अन्न, इससे शुद्ध विचार एवं विचार की शुद्धि से मन की शुद्धि, यह एक पूरी प्रक्रिया है, यह संकल्पना भारत के ऋषियों ने दुनिया को दी. उन्होंने कहा की हम अमृत पुत्र हैं इसलिए गौ-पालन करें क्योंकि सबसे मजबूत डीएनए भारतवर्ष का है तथा १५ हज़ार वर्ष पुराना है यह ऋषियों के माध्यम से उनकी गौसेवा तथा पंचगव्य के उपयोग से हम तक पहुंचा है.
कार्यक्रम का संचालन डॉ. शशिरंजन अकेला एवं आभार प्रदर्शन प्रो. सुरेश सिंह कुशवाह ने पेश किया.