लोकनिर्माण विभाग छतरपुर की जमीन बेचने के मामले में कलेक्टर पार्थ जैसवाल एक्शन में सरकारी संपत्ति के फर्जीवाड़े की रजिस्ट्री और इसके नामांतरण (म्यूटेशन) पर तत्काल रोक लगा दी

MP के छतरपुर में बड़ा मामला सामने आया है। PWD विभाग की करोड़ों रुपए की संपति को फर्जीवाड़ा कर अपने नाम कराने का आरोप है। इसमें बागेश्वरधाम से जुड़े एक सेवादार पर पर PWD विभाग की करोड़ों रुपए की संपति को फर्जीवाड़ा कर अपने नाम कराने का आरोप है

कि, उन्होंने कथित तौर पर करोड़ों रुपए की लोक निर्माण विभाग (PWD) की एक सरकारी बिल्डिंग की फर्जी रजिस्ट्री अपने नाम करा ली। मामले का खुलासा होते ही जिला प्रशासन और PWD विभाग में हड़कंप मच गया है।
जानकारी अनुसासर शहर के कोतवाली थाना क्षेत्र के पास बालाजी मंदिर के सामने स्थित यह सरकारी भवन नजूल और नगर-पालिका के रिकॉर्ड में अभी भी PWD विभाग के नाम पर दर्ज है। यह संपत्ति मूलतः छतरपुर महाराज द्वारा सरकार को दी गई थी। आरोप है कि बिल्डिंग में वर्षों से किराए पर रह रहे उपाध्याय परिवार ने फर्जी और कूटरचित दस्तावेज तैयार किए। इसके बाद बागेश्वर धाम के करीबी धीरेंद्र गौर और गोटेगांव के दुर्गेश पटेल ने मिलीभगत कर इस करोड़ों रुपए की सरकारी बिल्डिंग को मात्र 81 लाख रुपये में अपने नाम दर्ज करा लिया। संपति की वर्तमान कीमत करीब 9 करोड़ रुपए आंकी जा रही ।
मामले में पहले तो किसी को कुछ पता नहीं था, लेकिन बाद में जब यह बिल्डिंग को बाजार में 9 करोड़ रुपए की कीमत पर बेचे जाने की चर्चाएं शुरू हुईं, तब इस सरकारी फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ। यह भवन पूर्व में कानूनगो उमाशंकर तिवारी को किराए के तौर पर आवंटित था, जिसका किराया PWD की भवन पुस्तिका में नियमित रूप से दर्ज होता था।
नामांतरण पर रोक
पीडब्ल्युडी की संपति को फर्जीवाड़ा कर खुर्दबुर्द करने के आरोप के बाद जब मीडिया में मामला उछला तो तत्काल कलेक्टर पार्थ जैसवाल एक्शन में आ गए। मामला गरमाने और सुर्खियों में आने के बाद उन्होंने तत्काल कार्रवाई करते हुए इस सरकारी संपत्ति के फर्जीवाड़े की रजिस्ट्री और इसके नामांतरण (म्यूटेशन) पर तत्काल रोक लगा दी है।
दूसरी ओर PWD विभाग के चीफ इंजीनियर ने इस अवैध रजिस्ट्री के खिलाफ उच्च न्यायालय (High Court) जाने की तैयारी शुरू कर दी है।
PWD विभाग ने बीच बाजार में भवन पर नोटिस चस्पा कर दिया है। उसमें स्पष्ट लिखा है कि संपत्ति सरकारी है और निजी स्वामित्व का दावा अवैध है।
सूत्रों के अनुसार फर्जीवाड़े के इस गंभीर मामले में कई सरकारी कर्मचारियों की मिलीभगत होने की भी आशंका जताई जा रही है, जिसकी जांच की जा रही है।