बीयू में राजभाषा पखवाड़ा समापन, प्रो. सिंघई बोले– मातृभाषा का सम्मान जरूरी, प्रो. जैन ने कठिन शब्दों को सरल बनाने पर दिया जोर

भोपाल। बरकतउल्ला विश्वविद्यालय (बीयू) के तुलनात्मक भाषा एवं संस्कृति विभाग द्वारा बुधवार को राजभाषा पखवाड़ा का समापन समारोह आयोजित किया गया। इस अवसर पर देवी अहिल्या विश्वविद्यालय, इंदौर के कुलगुरु प्रो. राकेश सिंघई मुख्य अतिथि रहे, जबकि कार्यक्रम की अध्यक्षता बीयू के कुलगुरु प्रो. एसके जैन ने की। समापन सत्र में पखवाड़े के अंतर्गत आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं के प्रतिभागियों को सम्मानित किया गया। इस दौरान विभागाध्यक्ष डॉ. अच्छेलाल, डीएसडब्ल्यू प्रो. पवन मिश्रा, मनोविज्ञान विभाग के एचओडी प्रो. भूपेंद्र सिंह, वाणिज्य विभाग की एचओडी डॉ. अंशुजा तिवारी सहित अन्य शिक्षक व बड़ी संख्या विद्यार्थी मौजूद रहे।
भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा आयोजित ‘मानक मंथन’ कार्यक्रम में प्रो. सिंघई ने कहा कि भारत की आजादी के शुरुआती वर्षों में ही हिंदी भाषा के मानक तय हो जाने चाहिए थे। उन्होंने कहा कि हिंदी भाषी लोग भी मात्रा और बिंदु के प्रयोग में अशुद्धियां करते हैं, जो खेदजनक है। मातृभाषा हिंदी को लेकर मजाक उड़ाना अनुचित है और इसका विरोध होना चाहिए। उन्होंने भाषा में एकरूपता लाने की आवश्यकता बताते हुए कहा कि ‘शासकीय’ और ‘राज्यकीय’ जैसे अलग-अलग शब्द भ्रम पैदा करते हैं।
कुलगुरु प्रो. जैन ने कहा कि हमें भाषा के प्रति लापरवाही छोड़नी होगी। हिंदी में उच्चारण और लेखन दोनों की शुद्धता जरूरी है। कठिन और क्लिष्ट शब्दों को सरल व सुगम बनाने की दिशा में काम होना चाहिए, तभी भाषा जनसामान्य तक सहजता से पहुंचेगी।
भाषाविद् व आईसीएसएएल के प्रो. वी.आर. जन्नाथन ने कहा कि हिंदी भाषा के मानकीकरण की आवश्यकता है। यदि समय रहते नियम तय नहीं किए गए तो यह भाषा धीरे-धीरे सिकुड़ सकती है।