“ नाटकों में रस की भूमिका एवं सूक्ष्मता – प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी”

केन्द्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय, भोपाल में चल रही नाट्यशास्त्रीय 21 दिवसीय कार्यशाला में आज नाट्यशास्त्र के विश्वप्रसिद्ध विद्वान् प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी ने नाटकों में रस की भूमिका पर व्याख्यान दिया।
उन्होंने बताया कि नाट्य दर्शक नाटक के माध्यम से रस प्राप्त करते हैं। इसलिए रंगकर्मी को अभिनय में पग-पग पर सावधान रहना चाहिए। रस का आस्वाद नष्ट नहीं होना चाहिए। अपने व्याख्यान में उन्होंने नाट्यशास्त्र में प्रयुक्त रस विषयक पारिभाषिक शब्दों का विश्लेषण किया। अनेक स्थायी-भावों का विवेचन करते हुये उन्होंने सोदाहरण उनका बोध कराया। लीला, आचार, राग, भोग आदि नाट्यशास्त्रीय शब्दों का दार्शनिक स्वरूप बताते हुये प्रो. त्रिपाठी ने इन समस्त नाट्यतत्त्वों की व्याख्या में शारदातनय के योगदान को समझाया। इस प्रसंग में उन्होंने नाट्यशास्त्रीय परम्परा में प्राप्त रस-विषयक सूक्ष्मता का उल्लेख किया तथा विभिन्न दर्शनों के आलोक में रस की अवधारणा को स्पष्ट किया। शारदातनय ने अनेक शब्दों की व्याख्या लोकव्यवहार को ध्यान में रखते हुए किया है। प्रो. त्रिपाठी ने उन शब्दों का भी गहन विमर्श किया।

प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी कल दिनांक 07.06.2025 को भी प्रातः 09.30 से 01.00 बजे तक कार्यशाला को सम्बोधित करेंगे।