भोपाल एवं केंद्रीय हिंदी निदेशालय नई दिल्ली के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के तृतीय दिवस तीन तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया

अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय भोपाल एवं केंद्रीय हिंदी निदेशालय नई दिल्ली के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के तृतीय दिवस तीन तकनीकी सत्रों का आयोजन किया गया। जिसमें मुख्यतः आमंत्रित विशेषज्ञों ने अपनी बात रखी तथा विभिन्न विद्वत जनों ने अपने शोध पत्र प्रस्तुत किये । आज संगोष्ठी के अंतिम दिवस तीन तकनीकी सत्र आयोजित किए गये तथा अंतिम सत्र समापन सत्र रहा। समापन सत्र के अध्यक्ष कुलपति प्रो. खेमसिंह डहेरिया रहे। विशिष्ट अतिथि के रूप में प्रो. के. जी. सुरेश, कुलपति माखनलाल चतुर्वेदी विश्वविद्यालय, भोपाल, प्रोफेसर सुरेश जैन, कुलपति बरकतुल्लाह विश्वविद्यालय, डॉ विकास दवे, निदेशक मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी, भोपाल एवं डॉ अनुपम माथुर सहनिर्देशिका केंद्रीय हिंदी निदेशालय रहे। मध्य प्रदेश साहित्य ग्रंथ अकादमी और विश्वविद्यालय के बीच एक पारस्परिक समझौता पर हस्ताक्षर हुए। समापन सत्र में स्वागत भाषण एवं विषय की प्रस्तावना विश्वविद्यालय के कुल सचिव श्री शैलेंद्र जैन जी द्वारा दी गई। विगत तीन दिवस से चल रहे इस संगोष्ठी का प्रतिवेदन प्रोफेसर राजीव वर्मा संकाय अध्यक्ष, समाज विज्ञान संकाय ने प्रस्तुत किया।
माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्विद्यालय के कुलपति के. जी. सुरेश ने कहा कि विश्व स्तर पर कई मंचों पर हिंदी को स्थान मिला हैं। आज कई वैश्विक नेता भारत के संदर्भ मे हिंदी में ट्वीट करते है। भाषा सिर्फ देश की संस्कृति का विषय नही, भाषा मानवाधिकार का विषय है। किसी भी व्यक्ति का संवैधानिक अधिकार भाषा है। उन्होंने बताया कि नौकरी या रोजगार की उपलब्धता अपनी मातृभाषा में होना चाहिए। आज क्षेत्रीय भाषाओं में समाचार चैनल की स्थापना हो गई है। आज बहुराष्ट्रीय कंपनी को समझ आ गया हैं, कि खरीददार तक पहुंचना हो तो स्थानीय भाषा का ज्ञान होना आवश्यक हैं ।

बरकतउल्लाह विश्विद्यालय के कुलपति प्रोफेसर सुरेश कुमार जैन ने अपने उद्बोधन में कहा कि भारत में सबसे ज्यादा बोली जाने वाली और समझी जाने वाली भाषा हिंदी हैं और आने वाली पीढ़ी को हिंदी का ज्ञान होना आवश्यक हैं। दैनिक दिनचर्या में हिंदी का उपयोग करने से ही भाषा का प्रचार प्रसार होगा।
मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक डा विकास दवे ने बताया कि, संस्कृत की पूरी वैज्ञानिकता की परंपरा अब हिंदी में है। श्रद्धेय बापुराव वाकनकर ने कहा था, कंप्यूटर जैसी मशीन के लिए श्रेष्ठतम भाषा संस्कृत या हिंदी हो सकती हैं। हमारी बोली और भाषा को प्रसारित करने में रेडियो का भी सबसे ज्यादा योगदान है। साहित्य अकादमी भी भाषा उन्नयन के लिए कार्य कर रहा हैं। आज हिंदी अत्यंत गौरव के युग में पहुंच चुकी है। आज राष्ट्रीय शिक्षा नीति में भाषा को लेकर बहुत ही उच्च कोटि का कार्य हो रहा है।
तीन दिवसीय संगोष्ठी में आए हुए सुझावों को डॉ. आशीष नकाशे,सहायक प्राध्यापक, अर्थशास्त्र विभाग ने प्रस्तुत किया। संगोष्ठी में सभी सत्रों में किए गए चर्चा पर माननीय कुलपति जी ने एक विहंग दृष्टि डाली और सभी अतिथियों द्वारा दिए गए वक्तव्यों का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया और सभी महानुभावों को धन्यवाद दिया। अंत में कुल सचिव जी द्वारा आभार प्रदर्शन किया गया। कार्यक्रम का संचालन कुसुम दीक्षित चौहान, सहायक प्राध्यापक, एवं विभाग अध्यक्ष, विधि विभाग के द्वारा किया गया। इस अवसर पर आमंत्रित अतिथि, विश्वविद्यालय के शिक्षक, आधिकारिक, कर्मचारी एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।