उच्च शिक्षा विभाग मे माननीय न्यायालय के निर्णय से एक ही पद पर दो अतिथि विद्वान को कार्यग्रहण कराना पड़ा। नियम विरुद्ध व्याख्या कर हटाया था…

अतिथि विद्वान ओएसडी को तत्काल प्रभार अन्य किसी को देना चाहिए..
उच्च शिक्षा विभाग मे माननीय न्यायालय के निर्णय से एक ही पद पर दो अतिथि विद्वान को कार्यग्रहण कराना पड़ा। नियम विरुद्ध व्याख्या कर हटाया था… क्या है पूरा मामला चलिए मैं आपको बताता हूं
प्रभारी अतिथि विद्वान (ओएसडी) उच्च शिक्षा संचालनालय जो पूर्व में न्यायालय भी देखते थे अपनी मनचाही इच्छा..? पूर्ति के लिए माननीय न्यायालय में लगातार मनगढ़ंत और संविधान से सर्वोपरी और व्यक्तिगत जागीर एवं अपनी बपोती मानकर लगातार गलतियां तो कर ही रहे है….? साथ ही आयुक्त और अपर मुख्य सचिव को भी न्यायालय में ले जाने से बाज़ नही आ रहे है?
उक्त प्रभारी की ग़लती के कारण श्रीमान आयुक्त महोदय ने इस बार हाजिर होने से पहले ही प्रभारी की मंशा को भांप लिया था और समझदारी तथा सूझबूझ से रातों रात अतिथि विद्वान को आमंत्रित पत्र दिलवाकर विभाग को बदनाम होने से बचा लिया है। जो सूत्रों से प्राप्त जानकारी हमें मिली है
मानदेय व्यवस्था की व्यवस्था बाद में किया जाता रहेगा। परन्तु ऐसे प्रभारी अतिथि विद्वान ओएसडी का पद प्रभार अन्य किसी को देना चाहिए क्योंकि आयुक्त और अपर मुख्य सचिव को न्यायालय में पेश होना पड़ा था.